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‘कपड़े उतरवा कर ब्रेस्ट परीक्षण करवाते हैं सीनियर’, मेडिकल कॉलेज में छात्रों से पढ़वाई जा रही अश्लील किताबें

देश में हर साल न जाने कितने युवा डॉक्टरों की पढाई करने और डॉक्टर बनने का अरमान करते हैं और एडविसन लेते हैं और वह चाहते हैं कि हम डॉक्टर बने और देश की सेवा करें लेकिन बीते कुछ दिनों से मेडिकल कॉलजों से एक हैरान कर देने वाली खबर सामने आई है. वहीं कुछ मेडिकल कॉलेजों में नए छात्रों के साथ रैगिंग के नाम पर बहुत ही आपत्तिजनक और घिनौनी प्रथाएँ चल रही हैं. इनमें विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा को बढ़ावा देने वाली अश्लील पुस्तिकाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह घटनाएँ न केवल छात्रों की मानसिक और शारीरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं, बल्कि समाज में बलात्कार संस्कृति को बढ़ावा देने वाली भी हैं.

अश्लील पुस्तिकाओं और रैगिंग की

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, कुछ मेडिकल कॉलेजों में नए छात्रों को “व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम” या “मेडिकल साहित्य” जैसे नामों से अश्लील पुस्तिकाओं को पढ़ने और याद करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. इन पुस्तिकाओं में महिलाओं के शरीर और उनके विकास को अपमानजनक और भद्दे तरीके से वर्णित किया गया है. उदाहरण के तौर पर, “BHMB” (बड़ी होकर माल बनेगी) जैसे संक्षिप्त शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, जो महिलाओं के प्रति अत्यधिक अपमानजनक होते हैं.

इन पुस्तिकाओं में महिलाओं के स्तन विकास के चरणों को फलों या सब्जियों के साथ तुलना की जाती है, जो बेहद अनुचित और घिनौनी है। इसके अलावा, महिलाओं के लिए हर संदर्भ में यौन हिंसा, बलात्कार और जननांगों के बारे में गंदे और आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है. नर्सों को भी “उपलब्ध” और “इच्छुक” के रूप में चित्रित किया जाता है, जिससे यह साबित होता है कि इस तरह की रैगिंग केवल छात्रों को यौन उत्पीड़न के लिए प्रेरित नहीं करती, बल्कि उन्हें यह सोचने के लिए मजबूर करती है कि महिलाओं का शोषण करना एक सामान्य और मजाकिया बात है.

रैगिंग और डॉक्टरों के आचरण पर असर

यह स्थिति डॉक्टरों के पेशेवर आचरण को भी प्रभावित करती है. कई डॉक्टरों ने अपने अनुभवों को साझा किया है, जिनमें ऑपरेशन के दौरान बेहोश पड़े मरीजों के शरीर का मजाक उड़ाने की घटनाएँ शामिल हैं. एक वरिष्ठ महिला डॉक्टर के अनुसार, “ऑपरेशन टेबल पर बेहोश पड़े मरीजों के शरीर का मजाक करना सबसे घटिया काम है जो मैंने देखा है.” यह साबित करता है कि रैगिंग की इन प्रथाओं से मानसिक रूप से तैयार किए गए डॉक्टरों का व्यवहार भी इस तरह का असंवेदनशील और हिंसक हो सकता है.

एक अन्य डॉक्टर ने बताया कि “छात्रों के रूप में, हम पुरुष डॉक्टरों के इर्द-गिर्द खड़े होकर युवतियों से अपने कपड़े उतारने के लिए कहते थे, जबकि वे हमें ‘स्तन परीक्षण’ करने का तरीका दिखाते थे.” यह घटना यह दिखाती है कि मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग न केवल मानसिक शोषण का कारण बनती है, बल्कि यह महिलाओं के खिलाफ शारीरिक उत्पीड़न को भी बढ़ावा देती है.

Disclaimer ( इस खबर की पु्ष्टि द मीडिया वारियर नहीं करता है यह टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक है)

Sagar Dwivedi

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