सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के खिलाफ मानहानि मामले में सुनवाई करते हुए भारतीय जनता पार्टी (BJP) को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि अदालत को राजनीति का अखाड़ा बनाना ठीक नहीं है और नेताओं को आलोचना झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए.
मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब बीजेपी ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए रेवंत रेड्डी के खिलाफ दायर मानहानि मामले को फिर से जीवित रखने की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने न केवल यह मांग ठुकरा दी बल्कि स्पष्ट कर दिया कि राजनीतिक विवादों को लेकर अदालत का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए.
सीजेआई गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि ‘हम बार-बार कह रहे हैं कि इस अदालत का इस्तेमाल राजनीतिक लड़ाई के लिए न करें. याचिका खारिज की जाती है. अगर आप नेता हैं तो आपकी चमड़ी मोटी होनी चाहिए.’
तेलंगाना हाई कोर्ट ने 1 अगस्त 2024 को रेवंत रेड्डी को राहत देते हुए उनके खिलाफ लंबित मानहानि मामले की कार्यवाही को रद्द कर दिया था. यह मामला उस शिकायत पर आधारित था जिसे मई 2024 में बीजेपी तेलंगाना इकाई के महासचिव ने दर्ज कराया था.
शिकायत में आरोप लगाया गया था कि रेवंत रेड्डी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी पर अपमानजनक और भड़काऊ टिप्पणी की. कहा गया कि रेड्डी ने यह अफवाह फैलाई कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो आरक्षण समाप्त कर दिया जाएगा.
हैदराबाद की एक निचली अदालत ने अगस्त 2024 में कहा था कि रेड्डी के खिलाफ तत्कालीन भारतीय दंड संहिता (IPC) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत प्रथम दृष्टया मामला बनता है. धारा 125 चुनावों के दौरान विभिन्न वर्गों के बीच दुश्मनी फैलाने से संबंधित है. रेवंत रेड्डी ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी. उनकी दलील थी कि राजनीतिक भाषणों को मानहानि का विषय नहीं बनाया जा सकता और ऐसे भाषण अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जाते हैं.
तेलंगाना हाई कोर्ट ने रेड्डी की दलील को सही मानते हुए कहा कि राजनीतिक भाषणों पर मानहानि का आरोप लगाने की सीमा कहीं ज्यादा ऊंची होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक भाषणों को अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है. यह आरोप लगाना कि ऐसे भाषण मानहानिकारक हैं, एक और अतिशयोक्ति है.’ इसके साथ ही हाई कोर्ट ने निचली अदालत का आदेश और उससे जुड़ी कार्यवाही को रद्द कर दिया था.
अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए साफ कर दिया है कि अदालत को नेताओं की राजनीतिक लड़ाई का मंच नहीं बनने दिया जाएगा. यह टिप्पणी भविष्य में ऐसे मामलों पर भी बड़ा असर डाल सकती है.
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