Faiz Ahmed Faiz Sher : और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा…फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के सबसे फेमस शेर


इश्क़

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा, राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा.

उम्मीद

दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है, लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है.

उदासी

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब, आज तुम याद बे-हिसाब आए.

इश्क़

और क्या देखने को बाक़ी है, आप से दिल लगा के देख लिया.

इश्क़

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के, वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के.

याद

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं, किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं.

आरज़ू

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही, नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही.

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