Ahmed Faraz : ‘रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ…’, इश्क की दुनिया में ले जाते हैं अहमद फ़राज़ ये शेर


इश्क़

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ.

जुदाई

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें.

इश्क़

हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूम, कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी.

इश्क़

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम, तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ.

दोस्त

तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़', दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला.

क़िस्मत

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल, कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा.

भरोसा

दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है, और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता.

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