Teachers Day Special: शिक्षक दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में यहाँ के दो शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। एक शिक्षक ने पिछले 15 वर्षों से लगातार 100% रिज़ल्ट देकर शिक्षा की मिसाल कायम की, तो दूसरे ने सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदल दी। बच्चों के लिए क्लासरूम में AC और आधुनिक सुविधाएँ लगवाकर पढ़ाई का माहौल बिलकुल निजी स्कूलों जैसा बना दिया। इन दोनों शिक्षकों की लगन और नवाचार ने साबित कर दिया कि सच्चा शिक्षक वही है, जो सिर्फ पढ़ाता ही नहीं बल्कि बच्चों के सपनों को पंख भी देता है।
पहला नाम है आनंद कुमार, जिन्हें देश और दुनिया सुपर 30 के संस्थापक के रूप में जानती है। कभी आर्थिक तंगी में पापड़ बेचने तक मजबूर हुए आनंद कुमार ने गरीब बच्चों के लिए फ्री कोचिंग शुरू की। इस पहल ने देश को सैकड़ों आईआईटियन दिए। उनकी मेहनत और सेवा भाव को पहचान मिली और भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया।
दूसरे हैं आर.के. श्रीवास्तव, जिन्हें लोग प्यार से “1 रुपया गुरु दक्षिणा वाले गुरुजी” कहते हैं। पटना और बिहार के अलग-अलग हिस्सों में गरीब बच्चों को सिर्फ 1 रुपये में पढ़ाकर उन्होंने अब तक 950 से ज़्यादा बच्चों को आईआईटी पहुँचाया है। यह वही आरके श्रीवास्तव हैं जिनकी शुरुआत एक साधारण ऑटो चलाने वाले युवा के रूप में हुई थी। लेकिन शिक्षा के प्रति लगन और छात्रों को बड़ा सपना दिलाने की चाह ने उन्हें राष्ट्रपति भवन तक पहुँचा दिया, जहाँ वे राष्ट्रपति के बगल की कुर्सी पर बैठे और सम्मानित हुए।
यह कहानी केवल दो गुरुओं की नहीं, बल्कि उस सोच की है जो कहती है कि विद्या सबसे बड़ी दौलत है। पैसे की कमी इंसान की पढ़ाई की राह में दीवार नहीं बननी चाहिए। आज जब बड़े-बड़े कोचिंग संस्थान लाखों की फीस लेकर शिक्षा बेच रहे हैं, तब आनंद कुमार और आरके श्रीवास्तव जैसे शिक्षक बिना स्वार्थ के गरीब बच्चों को नई ज़िंदगी दे रहे हैं।
आनंद कुमार और आरके श्रीवास्तव की कार्यशैली भले अलग हो, लेकिन उद्देश्य एक ही है – हर बच्चे के सपने को पंख लगाना। यही वजह है कि आज पूरा देश इन्हें नमन करता है। ये दोनों गुरु सिर्फ शिक्षक नहीं, बल्कि उम्मीद की किरण हैं।
शिक्षक दिवस पर हमें इनसे यह सीख मिलती है कि अगर संकल्प पक्का हो, तो न गरीबी रोकेगी और न हालात। शिक्षा का दीपक अंधेरे को मिटाकर ही रहेगा।