Asaduddin Owaisi
बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, सियासत का पारा लगातार चढ़ता जा रहा है. इस बार सबसे ज्यादा सुर्खियों में है सीमांचल का इलाका, जहां की 24 विधानसभा सीटें चुनावी गणित को पूरी तरह बदल सकती हैं. सीमांचल के चार जिले, अररिया, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया न सिर्फ मुस्लिम बहुल जनसंख्या के लिए पहचाने जाते हैं बल्कि यहां का राजनीतिक रुझान राज्य की सत्ता का भविष्य तय करने में अहम भूमिका निभाता है.
2015 के बाद से यहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने जोरदार एंट्री की और 2020 में पांच सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया. हालांकि बाद में इसके चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए. बावजूद इसके AIMIM अब भी इस क्षेत्र में चर्चा का बड़ा मुद्दा बना हुआ है. इसी बीच वक्फ कानून और मतदाता सूची की ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ इस बार के चुनाव का केंद्र बिंदु बनते दिख रहे हैं.
सीमांचल क्षेत्र में कुल 24 विधानसभा सीटें आती हैं. किशनगंज जिले में सबसे ज्यादा 68% मुस्लिम आबादी है. कटिहार में 44%, अररिया में 43% और पूर्णिया में 38% मुस्लिम मतदाता हैं. यही वजह है कि यह इलाका राजनीतिक दलों के लिए निर्णायक साबित हो सकता है. पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सीमा से सटा यह क्षेत्र चुनावी रणनीति के लिहाज से बेहद संवेदनशील माना जाता है.
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सीमांचल में आठ सीटें जीती थीं, जबकि जेडीयू ने चार, कांग्रेस ने पांच और सीपीआईएमएल व आरजेडी ने एक-एक सीट पर कब्जा किया. AIMIM ने पांच सीटों पर जीत दर्ज कर धमाका किया था. हालांकि, चार विधायक बाद में आरजेडी में चले गए. किशनगंज जिले में एनडीए का खाता भी नहीं खुल सका था.
इस बार सीमांचल की राजनीति और ज्यादा दिलचस्प हो गई है. जेडीयू के पूर्व विधायक मुजाहिद आलम अब आरजेडी में हैं. AIMIM से जीतकर आए मोहम्मद इजहार असफी और अंजर नयीमी भी आरजेडी में शामिल हो चुके हैं. वहीं, कांग्रेस के पूर्व विधायक तौसीफ आलम अब AIMIM में आ गए हैं. यानी पुराने समीकरण पूरी तरह से उलट-पलट हो चुके हैं.
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होंगे. उन्होंने एनडीए और महागठबंधन दोनों पर करारा हमला बोला है. ओवैसी ने कहा था कि “एकतरफ़ा मोहब्बत अब नहीं चलेगी. बिहार की जनता को समझना होगा कि हमारे खिलाफ जो आरोप लगाए गए वो सिर्फ़ झूठ थे. ये सब इसलिए किया गया ताकि गरीब और दबे-कुचले लोगों का नेता उनकी राजनीतिक ताक़त न बन सके, उन्होंने यह भी जोड़ा कि “वे बस यही चाहते हैं कि आप उनके ग़ुलाम बने रहें, सिर झुकाकर उनके पीछे चलते रहें.’
सीमांचल का वोट बैंक इस बार किस ओर झुकेगा, यह कहना अभी मुश्किल है. पर इतना तय है कि यहां की 24 सीटें पूरे बिहार के चुनावी नतीजों को गहराई से प्रभावित करेंगी. अगर AIMIM फिर से मजबूत वापसी करती है तो महागठबंधन और एनडीए दोनों के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है.
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