मध्य प्रदेश कैडर के 2019 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. नागार्जुन बी. गौड़ा एक बड़े विवाद के केंद्र में आ गए हैं. हारदा जिले में एडीएम पद पर रहते हुए उन्होंने एक अवैध खनन जुर्माने को ₹51 करोड़ से घटाकर महज़ ₹4,032 कर दिया था. अब इस मामले पर उनका पक्ष भी सामने आ गया है. उन्होंने एक प्रतिष्ठित मीडिया संगठन से बातचीत में सभी आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि “पूरा मामला दस्तावेज़ों और कानूनी प्रक्रिया के अनुसार निपटाया गया था.”
यह मामला सामने लाने वाले आरटीआई कार्यकर्ता आनंद जाट का दावा है कि यह ‘साफ़ तौर पर एक फेवर और कवर-अप’ है. सोशल मीडिया पर यह खबर तेजी से वायरल हो रही है और लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर ₹51 करोड़ का जुर्माना कुछ हज़ार में कैसे सिमट गया.
कौन हैं डॉ. नागार्जुन बी. गौड़ा?
डॉ. गौड़ा 2019 बैच के एमपी कैडर के आईएएस अधिकारी हैं. फिलहाल वे खंडवा जिला पंचायत के सीईओ के पद पर कार्यरत हैं. डॉक्टर की डिग्री रखने वाले नागार्जुन गौड़ा अपनी सोशल मीडिया एक्टिविटी, मोटिवेशनल स्पीच और युवाओं से जुड़ाव के लिए जाने जाते हैं. वे आईएएस अधिकारी सृष्टि देशमुख के पति हैं, जो खुद 2019 बैच की टॉपर अफसर हैं.
₹51 करोड़ से ₹4,000 तक: पूरा मामला क्या है?
यह विवाद इंदौर-बीतुल नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट से जुड़ा है. आरोप है कि Path India Company ने आंधेरिखेड़ा गांव में बिना अनुमति 3.11 लाख क्यूबिक मीटर ग्रेवल (बजरी) की खुदाई की थी. उस समय के एडीएम प्रवीण फूलपागर ने ₹51.67 करोड़ का नोटिस जारी किया था. लेकिन उनके ट्रांसफर के बाद जब डॉ. नागार्जुन बी. गौड़ा ने कार्यभार संभाला, तो यह जुर्माना घटाकर ₹4,032 कर दिया गया. आधिकारिक दस्तावेज़ों के अनुसार, नई जांच में कंपनी पर आरोपित खुदाई केवल 2,688 क्यूबिक मीटर पाई गई.
आरटीआई कार्यकर्ता के आरोप: “डील और फेवर का खेल”
आरटीआई कार्यकर्ता आनंद जाट ने आरोप लगाया कि जांच में भारी अनियमितता हुई है. उन्होंने कहा, “अधिकारियों ने कोई फोटो या वीडियो सबूत नहीं होने की बात कही, जबकि ग्रामीणों के पास खुदाई के सबूत मौजूद हैं.” जाट ने यह भी दावा किया कि मामला दबाने के लिए “डील” की गई और आज तक इस पर किसी प्रकार की कार्रवाई या पुनरावलोकन नहीं हुआ. IAS नागार्जुन गौड़ा का जवाब: “कोई सबूत नहीं, सब कुछ कानूनी”
डॉ. गौड़ा ने अपने बचाव में कहा,
“पिछले एडीएम ने केवल नोटिस जारी किया था, जुर्माना नहीं लगाया था. जब मैंने चार्ज संभाला, तो फाइनल सुनवाई हुई. तहसीलदार की रिपोर्ट में कमियां थीं, पंचनामा साबित नहीं था और खनन का ठोस प्रमाण नहीं मिला. उन्होंने यह भी जोड़ा कि पिछले दो सालों में किसी ने अपील तक नहीं की, जिससे साफ है कि आदेश कानूनी रूप से सही था.”
सोशल मीडिया पर मचा बवाल
मामला सामने आते ही सोशल मीडिया पर लोग सरकार और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं. कई यूजर्स ने कहा कि “अगर ऐसा ही चलता रहा तो अवैध खनन पर कोई नियंत्रण नहीं रहेगा. अब तक किसी औपचारिक जांच की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन जनदबाव बढ़ता जा रहा है और एक्टिविस्ट्स पुनः जांच की मांग कर रहे हैं. वहीं डॉ. गौड़ा ने कहा है कि अगर जांच बैठाई जाती है तो वे पूरी तरह सहयोग करेंगे.