Supreme Court on Kota Suicide Case: देश की सबसे बड़ी अदालत ने कोचिंग हब कोटा में लगातार हो रही छात्र आत्महत्याओं पर कड़ी नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 23 मई 2025 को राजस्थान सरकार से पूछा कि आखिर आत्महत्याएं सिर्फ कोटा में ही क्यों हो रही हैं? अदालत ने सरकार से इस पर ठोस जवाब और कार्ययोजना मांगी है।
जस्टिस जेपी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने इस संवेदनशील मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि कोटा में इस साल अब तक 14 छात्रों ने आत्महत्या कर ली है। यह आंकड़ा चौंकाने वाला है और सरकार के लिए गंभीर चेतावनी भी। कोर्ट ने सरकार के रवैये पर नाराजगी जाहिर करते हुए पूछा, “आप एक राज्य के रूप में क्या कर रहे हैं? क्या आपने आत्महत्याओं के कारणों को समझने और समाधान खोजने की कोशिश की?”
कोर्ट ने कहा कि छात्रों की आत्महत्या केवल व्यक्तिगत तनाव का मामला नहीं है, यह एक सामाजिक और प्रणालीगत विफलता को दर्शाता है। बच्चों पर पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं का इतना दबाव क्यों है कि वे मौत को गले लगाने को मजबूर हो जाते हैं?
राजस्थान सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने कोर्ट को बताया कि आत्महत्या के बढ़ते मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया है। यह टीम आत्महत्याओं के पीछे की असली वजहों को खोजने का प्रयास कर रही है। वकील ने यह भी कहा कि सरकार कोटा में छात्रों की मानसिक सेहत के लिए कई उपाय कर रही है, जिसमें काउंसलिंग सेंटर, हेल्पलाइन और जागरूकता कार्यक्रम शामिल हैं।
हालांकि कोर्ट इन प्रयासों से संतुष्ट नहीं दिखा। जजों ने दो टूक कहा कि सिर्फ योजनाएं बनाना काफी नहीं, ज़मीन पर असर दिखना चाहिए। कोटा जैसे शहर में, जहां हर साल लाखों छात्र बेहतर भविष्य की उम्मीद लेकर आते हैं, वहां बार-बार आत्महत्याएं होना गंभीर चिंता का विषय है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में SIT की रिपोर्ट और सरकार द्वारा उठाए गए ठोस कदमों की जानकारी जल्द से जल्द देने का आदेश दिया है। अगली सुनवाई में कोर्ट यह देखेगा कि सरकार ने केवल कागजी बातें की हैं या वास्तव में छात्रों के जीवन को बचाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए हैं।
अब सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या राजस्थान सरकार कोटा के छात्रों की जिंदगी को बचाने के लिए कोई निर्णायक कार्रवाई करेगी या फिर हर साल यूं ही बुझते रहेंगे सपनों के चिराग।